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न टोको दोस्तो उस की बहार नाम-ए-ख़ुदा | शाही शायरी
na Toko dosto uski bahaar nam-e-KHuda

ग़ज़ल

न टोको दोस्तो उस की बहार नाम-ए-ख़ुदा

नज़ीर अकबराबादी

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न टोको दोस्तो उस की बहार नाम-ए-ख़ुदा
यही अब एक है याँ गुल-एज़ार नाम-ए-ख़ुदा

ये वो सनम है परी-रू कि जिस पे होती थीं
हज़ार जान से परियाँ निसार नाम-ए-ख़ुदा

उसी सनम की निगाहों की बर्छियाँ यारो
हुई हैं मेरे कलेजे के पार नाम-ए-ख़ुदा

उसी के नश्तर-ए-मिज़्गाँ में अब वो तेज़ी है
कि जिस से होते हैं हम दिल-फ़िगार नाम-ए-ख़ुदा

उसी सनम के रुख़ ओ ज़ुल्फ़ के तसव्वुर में
हमारी गुज़रे है लैल-ओ-नहार नाम-ए-ख़ुदा

गली में कूचा ओ बाज़ार में हम अब दिन रात
उसी के वास्ते फिरते हैं ख़्वार नाम-ए-ख़ुदा

उसी के सर की क़सम है कि हम तो मर जाते
अगर न होता ये गुल-रू निगार नाम-ए-ख़ुदा

बने हैं याँ जो कई दैर और सनम-ख़ाने
उधर जो जो होता है उस का गुज़ार नाम-ए-ख़ुदा

उठा के सीना झटक बाज़ू और बना कर धज
चले है जिस घड़ी ठोकर को मार नाम-ए-ख़ुदा

क़दम क़दम पे बरहमन कहें हैं बिस्मिल्लाह
सनम भी कहते हैं सब बार बार नाम-ए-ख़ुदा

ग़रज़ जिधर को निकलता है ये तो हर इक के
ज़बाँ से निकले है बे-इख़्तियार नाम-ए-ख़ुदा

'नज़ीर' एक ग़ज़ल और कह कि तेरे सुख़न
हैं अब तो सब गुहर-ए-आब-दार नाम-ए-ख़ुदा