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न तोड़ शीशों को ओ गुल-बदन तड़ाक़-पड़ाक़ | शाही शायरी
na toD shishon ko o gul-badan taDaq-paDaq

ग़ज़ल

न तोड़ शीशों को ओ गुल-बदन तड़ाक़-पड़ाक़

तनवीर देहलवी

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न तोड़ शीशों को ओ गुल-बदन तड़ाक़-पड़ाक़
ये दिल-शिकन है सदा-ए-शिकन तड़ाक़-पड़ाक़

ब-रंग-ए-गुंचा-ए-गुल चुप हो क्यूँ जवाब तो दो
मिरा सुख़न का है ये हो सुख़न तड़ाक़-पड़ाक़

अभी उठे तिरा बीमार-ए-ना-तवाँ ग़श से
जो दे तू बोसा-ए-सेब-ए-ज़क़न तड़ाक़-पड़ाक़

हज़ारों शीशा-ए-दिल कोह-ए-ग़म पे ऐ 'तनवीर'
मुदाम तोड़े है चर्ख़-ए-कुहन तड़ाक़-पड़ाक़