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न तो गुँध हूँ किसी फूल की न ही फूल हूँ किसी बाग़ का | शाही शायरी
na to gundh hun kisi phul ki na hi phul hun kisi bagh ka

ग़ज़ल

न तो गुँध हूँ किसी फूल की न ही फूल हूँ किसी बाग़ का

शिवकुमार बिलग्रामी

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न तो गुँध हूँ किसी फूल की न ही फूल हूँ किसी बाग़ का
किसी आँख को जो न भा सका वो उजाड़ हूँ किसी राग़ का

मिरे अश्क से मिरे दर्द से नहीं वास्ता है जहान को
न तो अश्क हूँ किसी 'मीर' का न ही दर्द हूँ किसी 'दाग़' का

जो जला करे तो जला करे जो बुझा रहे तो बुझा रहे
किसी और को न सुनाई दे वही दर्द हूँ मैं चराग़ का

न तो याद हूँ कोई पुर-कशिश न ही ख़्वाब हूँ कोई ख़ुशनुमा
दिल-ए-शाद को जो करे दुखी वो ख़याल हूँ मैं दिमाग़ का

न तो प्यास हूँ मैं शराब की न ही घूँट हूँ मैं शराब का
बुझी प्यास जो न जगा सके वही घूँट हूँ मैं अयाग़ का