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न तिरा ऐ निगार बेहतर है | शाही शायरी
na tera ai nigar behtar hai

ग़ज़ल

न तिरा ऐ निगार बेहतर है

क़ुर्बी वेलोरी

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न तिरा ऐ निगार बेहतर है
रुख़ पे लहु का निखार बेहतर है

क्या हक़ीक़ी ओ क्या मजाज़ी होए
इश्क़ का कारोबार बेहतर है

ख़िर्मन-ए-अक़्ल के जलाने कूँ
इश्क़ का यक शरार बेहतर है

दुश्मन-ए-बद-गुहर से लड़ने कूँ
लुत्फ़-ए-हक़ का हिसार बेहतर है

सरनिसक यार की जुदाई कूँ
मौत का इंतिज़ार बेहतर है