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न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता | शाही शायरी
na tha kuchh to KHuda tha kuchh na hota to KHuda hota

ग़ज़ल

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता

मिर्ज़ा ग़ालिब

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न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता

In nothingness God was there, if naught he would persist
Existence has sunk me, what loss, if I did'nt exist

हुआ जब ग़म से यूँ बे-हिस तो ग़म क्या सर के कटने का
न होता गर जुदा तन से तो ज़ानू पर धरा होता

When so burdenened, why the sorrow, of losing one's head
If it had not been severed, would be, hanging low instead

हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता

Though ages he's been dead Gaalib is, still thought of today
At every trice, to ask what would be, if it were this way