न साक़ी है न मीना है न बर में यार-ए-जानी है
हक़ीक़त में नहीं जीते ब-सूरत ज़िंदगानी है
नवाज़िश पर मिज़ाज आया जहाँ दीं गालियाँ लाखों
करम है आप का तुर्फ़ा अजाइब मेहरबानी है
सुनो टुक गोश-ए-दिल से क़िस्सा-ए-जाँ सोज़ को मेरे
कि जग-बीती नहीं है आप-बीती ये कहानी है
अबस है सोच तुझ को नामा-बर दे शौक़ से मुझ को
कोई झिड़की कोई गाली अगर उस की ज़बानी है
तू अपने हाथ का छल्ला जो हर इक से छुपाता है
बता 'अफ़सोस' किस पर्दा-नशीं की ये निशानी है
ग़ज़ल
न साक़ी है न मीना है न बर में यार-ए-जानी है
मीर शेर अली अफ़्सोस