न रौंदो काँच सी राहें हमारी
तुम्हें चुभ जाएँगी किर्चें हमारी
मुसलसल धोके-बाज़ी कर रही हैं
हैं धोका-बाज़ सब साँसें हमारी
हमें ख़ामोश ही रहने दो यारो
तुम्हें चुभ जाएँगी बातें हमारी
करो ज़ुल्म-ओ-सितम पर याद रक्खो
बहुत पुर-सोज़ हैं आहें हमारी
हर इक पल रेज़ा रेज़ा हो रही हैं
हैं बोसीदा तमन्नाएँ हमारी
जड़ें तहतस्सुरा की तह तलक हैं
मगर महदूद हैं शाख़ें हमारी
हर इक मौसम में आँसू उग रहे हैं
बड़ी ज़रख़ेज़ हैं आँखें हमारी
ग़ज़ल
न रौंदो काँच सी राहें हमारी
नवाज़ असीमी