न रहे नामा ओ पैग़ाम के लाने वाले
ख़ाक के नीचे गए अर्श के जाने वाले
किश्वर-ए-इश्क़ की रस्में अजब उल्टी देखीं
सल्तनत करते हैं सब दिल के चुराने वाले
मुनइमो आलम-ए-दुनिया है सरा-ए-इबरत
जाएँगे सू-ए-अदम ख़ल्क़ में आने वाले
बोरिया साथ न जाएगा न तख़्त-ए-सुल्ताँ
सब बराबर हैं बशर ख़ल्क़ से जाने वाले
कोई बाक़ी न रहा है न रहेगा कोई
बे-निशाँ हो गए सब शान दिखाने वाले
न सिकंदर है न दारा है न क़ैसर है न जम
बे-महल ख़ाक में हैं क़स्र बनाने वाले
अपने अशआर का ऐ 'बर्क़' न क्यूँ शोहरा हो
साथ हैं ताइर-ए-मज़मूँ के उड़ाने वाले
ग़ज़ल
न रहे नामा ओ पैग़ाम के लाने वाले
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़