न रहा गुल न ख़ार ही आख़िर
इक रहा हुस्न-ए-यार ही आख़िर
अब जो छूटे भी हम क़फ़स से तो क्या
हो चुकी वाँ बहार ही आख़िर
आतिश-ए-दिल पे आब ले दौड़ा
दीदा-ए-अश्क-बार ही आख़िर
ज़िद से नासेह की मैं ने कर डाला
जेब को तार तार ही आख़िर
क्यूँ न हूँ तेरे दर पे होना है
एक दिन तो ग़ुबार ही आख़िर
काम आया न जाए शम-ए-मज़ार
ये दिल-ए-दाग़-दार ही आख़िर
शम्अ-रू पर मिसाल-ए-परवाना
हो गए हम निसार ही आख़िर
वो न आया इधर 'हसन' अफ़सोस
रह गया इंतिज़ार ही आख़िर
ग़ज़ल
न रहा गुल न ख़ार ही आख़िर
मीर हसन