न प्यारे ऊपर ऊपर माल हर सुब्ह-ओ-मसा चक्खो
हमारे पास भी इक रात तो सो कर मज़ा चक्खो
मिला दो दिल को अपने दिल से मेरे एक हो जाओ
बदन को वस्ल कर दो लज़्ज़त-ए-मेहर-ओ-वफ़ा चक्खो
कबाब-ए-लख़्त-ए-दिल मेरे नमक सूद-ए-मोहब्बत हैं
तुम्हारे वास्ते लाया हूँ सीने पर ज़रा चक्खो
रखो नोक-ए-ज़बाँ पर भर के उँगली ख़ून से मेरे
ये मीठा है कि कड़वा टुक तो इस का ज़ाइक़ा चक्खो
सहर ख़ुर्शीद लावे गर तुम्हारे सामने गुर्दा
समझ कर 'मुसहफ़ी' तुम उस को अपना नाश्ता चक्खो
ग़ज़ल
न प्यारे ऊपर ऊपर माल हर सुब्ह-ओ-मसा चक्खो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी