न पर्दा खोलियो ऐ इश्क़ ग़म में तू मेरा
कहीं न सामने उन के हो ज़र्द रू मेरा
तुम अपनी ज़ुल्फ़ से पूछो मिरी परेशानी
कि हाल उस को है मालूम हू-ब-हू मेरा
अगरचे लाख रफ़ू-गर ने दिल किया बेहतर
ये जब भी हो न सका ज़ख़्म-ए-दिल रफ़ू मेरा
फ़क़त वो इस लिए आते हैं जानिब-ए-ज़िंदाँ
कि फँस के घुटने लगे तौक़ में गुलू मेरा
निशाना तीर-ए-निगह का ब-दिल करूँ 'आरिफ़'
लड़ाए आँख अगर मुझ से जंग-जू मेरा
ग़ज़ल
न पर्दा खोलियो ऐ इश्क़ ग़म में तू मेरा
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़