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न पैमाने खनकते हैं न दौर-ए-जाम चलता है | शाही शायरी
na paimane khanakte hain na daur-e-jam chalta hai

ग़ज़ल

न पैमाने खनकते हैं न दौर-ए-जाम चलता है

शकील बदायुनी

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न पैमाने खनकते हैं न दौर-ए-जाम चलता है
नई दुनिया के रिंदों में ख़ुदा का नाम चलता है

ग़म-ए-इश्क़ से हैं ग़म-ए-हस्ती के हंगामे जुदा लेकिन
वहाँ भी दिन गुज़रते हैं यहाँ भी काम चलता है

छुपे हैं लाख हक़ के मरहले गुम-नाम होंटों पर
उसी की बात चल जाती है जिस का नाम चलता है

जुनून-ए-रह-रवी-ए-वक़्त की रफ़्तार से पूछो
कोई मंज़िल नहीं लेकिन ये सुब्ह ओ शाम चलता है

'शकील'-ए-मस्त को मस्ती में जो कहना है कहने दो
ये मय-ख़ाना है ऐ वाइ'ज़ यहाँ सब काम चलता है