न मुल्ला हूँ न मुफ़्ती हूँ न वाइज़ हूँ न क़ाज़ी हूँ
गुनहगार ओ ख़ता-कार ओ रज़ा-ए-हक़ पे राज़ी हूँ
जहाँ से हूँ यहाँ आया वहाँ जाऊँगा आख़िर को
मिरा ये हाल है यारो न मुस्तक़बिल न माज़ी हूँ
मैं हूँ नादान दूर-उफ़्तादा दानाई के दीवाँ से
न सानी हूँ सहाबी का न हम-बज़्म-ए-बयाज़ी हूँ
परेशाँ दिल हूँ मैं तंहाई से 'मातम' ज़माने में
न हम-दाैरान-ए-फ़ैज़ी हूँ न हम-अस्र-ए-फ़याज़ी हूँ
ग़ज़ल
न मुल्ला हूँ न मुफ़्ती हूँ न वाइज़ हूँ न क़ाज़ी हूँ
मातम फ़ज़ल मोहम्मद