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न मिला वो निफ़ाक़ के मारे | शाही शायरी
na mila wo nifaq ke mare

ग़ज़ल

न मिला वो निफ़ाक़ के मारे

मीर हसन

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न मिला वो निफ़ाक़ के मारे
क्या करें हम विफ़ाक़ के मारे

जब तक आवे है आवे तू हम तो
मर चुके इश्तियाक़ के मारे

मत ख़फ़ा हो कि आन निकले हैं
हम भी याँ इत्तिफ़ाक़ के मारे

मिल गए ख़ाक में हज़ारों ही
चर्ख़-ए-कोहना रुवाक़ के मारे

हो चुका हश्र भी 'हसन' लेकिन
न जिए हम फ़िराक़ के मारे