न मैं वो रहा क्या से क्या हो गया
क्या मिले तुम मुझे मैं ख़ुदा हो गया
वक़्त काटे न कटता था कल तक मिरा
दिल है मसरूफ़ जब से फ़िदा हो गया
इक तिरा नाम ही बस मुझे याद है
आज-कल ये मिरा फ़ल्सफ़ा हो गया
हर किसी की ज़बाँ पे है चर्चे मिरे
मानो अख़बार मैं आज का हो गया
उस के दर पे शब-ओ-रोज़ जा बैठना
काम हम से यही इक बड़ा हो गया
ना मिले ऐसे शाइर ज़माने हुए
एक 'ग़ालिब' था मैं दूसरा हो गया
ग़ज़ल
न मैं वो रहा क्या से क्या हो गया
जतीन्द्र वीर यख़मी ’जयवीर’