EN اردو
न क्यूँ-कर नज़्र दिल होता न क्यूँ-कर दम मिरा जाता | शाही शायरी
na kyun-kar nazr dil hota na kyun-kar dam mera jata

ग़ज़ल

न क्यूँ-कर नज़्र दिल होता न क्यूँ-कर दम मिरा जाता

बेख़ुद देहलवी

;

न क्यूँ-कर नज़्र दिल होता न क्यूँ-कर दम मिरा जाता
अकेला भेजता उस को वो ख़ाली हाथ क्या जाता

जनाज़े पर भी वो आते तो मुँह को ढाँक कर आते
हमारी जान ले कर भी न अंदाज़-ए-हया जाता

तुम्हारी याद मेरा दिल ये दोनों चलते पुर्ज़े हैं
जो इन में से कोई मिटता मुझे पहले मिटा जाता

तेरी चितवन के बल को हम ने क़ातिल ताक रखा था
किधर मक़्तल में बच कर हम से ये तीर-ए-क़ज़ा जाता

मज़ा जब था क़यामत तक न आता होश 'बेख़ुद' को
पिलाई थी जो मय साक़ी ने इतनी तो पिला जाता