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न कोई उन के सिवा और जान-ए-जाँ देखा | शाही शायरी
na koi un ke siwa aur jaan-e-jaan dekha

ग़ज़ल

न कोई उन के सिवा और जान-ए-जाँ देखा

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

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न कोई उन के सिवा और जान-ए-जाँ देखा
वही वही नज़र आएगा जहाँ जहाँ देखा

बहिश्त में भी उसी हूर को रवाँ देखा
यहाँ जो देख चुके थे वही वहाँ देखा

ख़िज़ान-ए-उम्र कुजा ओ कुजा बहार-ए-शबाब
फ़लक को रश्क हुआ कोई जब जवाँ देखा

गए जहान से जो लोग दो जहाँ से गए
किसी ने फिर न कभी अपना कारवाँ देखा

जलाया बज़्म में हर रोज़ शम्अ के मानिंद
हज़ारों बातें सुनाईं जो बे-ज़बाँ देखा

क़यामत आई ये तड़पा फ़िराक़ में ऐ 'बर्क़'
न फिर ज़मीन को पाया न आसमाँ देखा