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न ख़ून-ए-दिल है न मय का ख़ुमार आँखों में | शाही शायरी
na KHun-e-dil hai na mai ka KHumar aankhon mein

ग़ज़ल

न ख़ून-ए-दिल है न मय का ख़ुमार आँखों में

शोला अलीगढ़ी

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न ख़ून-ए-दिल है न मय का ख़ुमार आँखों में
बसी हुई है तुम्हारी बहार आँखों में

फिरी हैं पुतलियाँ बेगाना-वार आँखों में
छुपा हुआ है कोई पर्दा-दार आँखों में

उम्मीद-ए-जल्वा-ए-दीदार बाद-ए-मर्ग कहाँ
भरी है यास ने ख़ाक-ए-मज़ार आँखों में

दिए बग़ैर तिरे बाग़ में गुलों ने दाग़
चुभोए नर्गिस-ए-शहला ने ख़ार आँखों में

इलाही दीदा-ए-हैराँ खुला न रह जाए
ठहर न जाए कहीं इंतिज़ार आँखों में

वो रोने वाला हूँ 'शोला' कि बाद-ए-मर्ग मिरा
बनाएँ मर्दुम-ए-दीदा-ए-मज़ार आँखों में