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न ख़ाली ज़ेहन यूँ दुनिया का रह जाए | शाही शायरी
na Khaali zehn yun duniya ka rah jae

ग़ज़ल

न ख़ाली ज़ेहन यूँ दुनिया का रह जाए

महशर बदायुनी

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न ख़ाली ज़ेहन यूँ दुनिया का रह जाए
कि सारा काम नक़्श-ए-पा का रह जाए

ज़मीनों पर न यूँ क़ब्ज़ा करें शहर
कोई तो रास्ता सहरा का रह जाए

मिरे बारे में लहरें कुछ भी सोचें
मैं कहता हूँ भरम दरिया का रह जाए

जो राह-ए-जाँ में ज़ाहिर नक़्श-ए-जाँ हो
सफ़र आधा सफ़र-पैमा का रह जाए

नुमूद-ए-ज़ख़्म कम और ये तमन्ना
क़फ़स हो कर क़फ़स-आरा का रह जाए

अलग ही उस का नग़्मा है शजर पर
क़याम उस ताइर-ए-तन्हा का रह जाए