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न कर तलाश-ए-असर तीर है लगा न लगा | शाही शायरी
na kar talash-e-asar tir hai laga na laga

ग़ज़ल

न कर तलाश-ए-असर तीर है लगा न लगा

आरज़ू लखनवी

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न कर तलाश-ए-असर तीर है लगा न लगा
जो अपने बस का नहीं उस का आसरा न लगा

हयात लज़्ज़त-ए-आज़ार का है दूसरा नाम
नमक छिड़क तो छिड़क ज़ख़्म पर दवा न लगा

मिरे ख़याल की दुनिया में इस जहाँ से दूर
ये बैठे बैठे हुआ गुम कि फिर पता न लगा

ख़ुशी ये दिल की है इस में नहीं है अक़्ल को दख़्ल
बुरा वो कहते रहे और कुछ बुरा न लगा

चमक से बर्क़ की कम-तर है वक़्फ़ा-ए-दीदार
नज़र हटी कि उसे हाथ इक बहाना लगा

मिरी तलाश थी तशवीश-ए-दीदा-ए-बे-नूर
वो मिलते क्या मुझे अपना ही जब पता न लगा