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न जिस का कोई सहारा हो वो किधर जाए | शाही शायरी
na jis ka koi sahaara ho wo kidhar jae

ग़ज़ल

न जिस का कोई सहारा हो वो किधर जाए

औलाद अली रिज़वी

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न जिस का कोई सहारा हो वो किधर जाए
न आए मौत तो बे-मौत कैसे मर जाए

मैं इस ख़याल से उन से गिला नहीं करता
कहीं न फूल से चेहरे का रंग उतर जाए

तू ही बता दे मुझे बे-कसी-ए-मंज़िल-ए-शौक़
जो राह से भी न वाक़िफ़ हो वो किधर जाए

हज़ारों तौर नहीं चश्म-ए-मा'रिफ़त के लिए
जहाँ जहाँ तिरी मोजिज़-नुमा नज़र जाए

तजल्लियात से मा'मूर है हर इक ज़र्रा
बिला-सबब न कोई कोह-ए-तूर पर जाए

न पी तू अपने ये आँसू मज़ाक़ में 'साक़ी'
कहीं न ज़हर मोहब्बत में काम कर जाए