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न झटको ज़ुल्फ़ से पानी ये मोती टूट जाएँगे | शाही शायरी
na jhaTko zulf se pani ye moti TuT jaenge

ग़ज़ल

न झटको ज़ुल्फ़ से पानी ये मोती टूट जाएँगे

राजेन्द्र कृष्ण

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न झटको ज़ुल्फ़ से पानी ये मोती टूट जाएँगे
तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा मगर दिल टूट जाएँगे

ये भीगी रात ये भीगा बदन ये हुस्न का आलम
ये सब अंदाज़ मिल कर दो जहाँ को लूट जाएँगे

ये नाज़ुक लब हैं या आपस में दो लिपटी हुई कलियाँ
ज़रा इन को अलग कर दो तरन्नुम फूट जाएँगे

हमारी जान ले लेगा ये नीची आँख का जादू
चलो अच्छा हुआ मर कर जहाँ से छूट जाएँगे