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न जाने सेहर ये क्या तू ने चश्म-ए-यार किया | शाही शायरी
na jaane sehr ye kya tu ne chashm-e-yar kiya

ग़ज़ल

न जाने सेहर ये क्या तू ने चश्म-ए-यार किया

एहसान दानिश

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न जाने सेहर ये क्या तू ने चश्म-ए-यार किया
कि मैं ने होश के जामे को तार-तार किया

फ़ुसूँ अजीब ये ऐ मौसम-ए-बहार किया
कि ख़ार-ज़ार को हम-रंग-ए-लाला-ज़ार किया

महक रहा है हर इक गुल का जामा-ए-रंगीं
सबा ने बाग़ में क्या ज़िक्र-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार किया

न पूछो पिछले पहर अपनी याद का आलम
तुम्हारा ज़िक्र सितारों से बार बार किया

नसीम-ए-सुब्ह ने आ कर वो रागनी छेड़ी
हर एक फूल ने काँटे को झुक के प्यार किया

मिरे जहान-ए-मोहब्बत में पड़ गई हलचल
सुकून-ए-दिल ने मुझे और बे-क़रार किया

भर आए दीदा-ए-अंजुम में अश्क-ए-मजबूरी
जिगर को थाम के जब हम ने ज़िक्र-ए-यार किया

तड़प के आबला-पा एक बार फिर उट्ठे
ये किसी ने तज़किरा-ए-आमद-ए-बहार किया

गुज़र चुकी हैं जो 'एहसान' उन की महफ़िल में
उन्हें क़रार की घड़ियों ने बे-क़रार किया