EN اردو
न इतना कीजे तलबगार कौन आप का है | शाही शायरी
na itna kije talabgar kaun aap ka hai

ग़ज़ल

न इतना कीजे तलबगार कौन आप का है

मिर्ज़ा अली लुत्फ़

;

न इतना कीजे तलबगार कौन आप का है
ये ग़ैर है तो यहाँ यार कौन आप का है

न नाज़ कीजिए वारस्ता-ख़ातिरों के साथ
किधर हैं आप ख़रीदार कौन आप का है

मसीहा अपना है इक और ही लब-ए-जाँ-बख़्श
ख़ुदा के फ़ज़्ल से बीमार कौन आप का है

हम अपनी बे-गुनही को गुनाह कहते थे
बिगड़ गए ये गुनाहगार कौन आप का है

तसव्वुर और ही बदमस्त का है 'लुत्फ' को अब
न आप बहकिये सरशार कौन आप का है