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न इतना चाहिए ऐ पुर-शिकम ख़्वाब | शाही शायरी
na itna chahiye ai pur-shikam KHwab

ग़ज़ल

न इतना चाहिए ऐ पुर-शिकम ख़्वाब

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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न इतना चाहिए ऐ पुर-शिकम ख़्वाब
कि तेरे हक़ में है ज़ालिम सितम ख़्वाब

ख़याल-ए-माह-रू में ता-दम-ए-सुब्ह
न आया रात मुझ को एक दम ख़्वाब

कहो तो किस तरह आवे वहाँ नींद
जहाँ ख़ुर्शीद-रू हो आ के हम-ख़्वाब

पलक लगते नहीं क्या उड़ गया है
नसीबों का तिरे ऐ चश्म-ए-नम ख़्वाब

हमें बेहतर है सोना जागने से
भुलाता है हमारा दर्द-ओ-ग़म ख़्वाब

कहे था रात को 'हातिम' से 'मज़मूँ'
मुझे मख़मल उपर आता है कम ख़्वाब