न होंगे हम तो ये रंग-ए-गुलिस्ताँ कौन देखेगा
बहारों से ही तख़रीब-ए-बहाराँ कौन देखेगा
सर-ए-महशर जफ़ाओं की शिकायत बर-महल लेकिन
फिर इन मासूम नज़रों को पशीमाँ कौन देखेगा
बजा है लाला ओ गुल की तबाही का तसव्वुर भी
मगर ये मंज़र-ए-महशर-ब-दामाँ कौन देखेगा
मुझे तस्लीम है क़ैद-ए-क़फ़स से मौत बेहतर है
नशेमन पर हुजूम-ए-बर्क़-ओ-बाराँ कौन देखेगा
हसीं ताबीर-ए-मुस्तक़बिल सही इस की मगर 'अनवर'
नए फ़ित्नों का अब ख़्वाब-ए-परेशाँ कौन देखेगा
ग़ज़ल
न होंगे हम तो ये रंग-ए-गुलिस्ताँ कौन देखेगा
अनवर साबरी