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न हो तू जिस में वो दिल भी है क्या दिल | शाही शायरी
na ho tu jis mein wo dil bhi hai kya dil

ग़ज़ल

न हो तू जिस में वो दिल भी है क्या दिल

सय्यद नज़ीर हसन सख़ा देहलवी

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न हो तू जिस में वो दिल भी है क्या दिल
निकम्मा दिल बुरा दिल बद-नुमा दिल

बुतों को दे दिया नाम-ए-ख़ुदा दिल
'सख़ा' मेरी भी क्या हिम्मत है क्या दिल

उठे आग़ोश से जब दर्द उट्ठा
हिले पहलू से जब वो हिल गया दिल

अभी कमसिन हैं रुस्वाई का डर है
नहीं लेते किसी बदनाम का दिल

सुँघा कर निकहत-ए-ज़ुल्फ़-ए-मुअ'म्बर
उड़ा कर ले गई बाद-ए-सबा दिल

फिरे मुझ से तो गोया फिर गया बख़्त
बढ़े मेरी तरफ़ तो बढ़ गया दिल

वही काविश वही सोज़िश वही दर्द
तिरा पैकान है गोया मिरा दिल

हमें भी रंज-ओ-राहत की ख़बर थी
हमारे पास भी तिफ़्ली से था दिल

मिरे महबूब के महबूब हो तुम
फ़िदा हूँ दिल पे मैं तुम पर फ़िदा दिल

सँभल ही जाएगा इंसाँ है यारब
पिघल ही जाएगा पत्थर है या दिल

'सख़ा' जो मुझ पे गुज़रेगी सहूँगा
मिरे सीने में है इतना बड़ा दिल