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न हो जिस पे भरोसा उस से हम यारी नहीं रखते | शाही शायरी
na ho jis pe bharosa us se hum yari nahin rakhte

ग़ज़ल

न हो जिस पे भरोसा उस से हम यारी नहीं रखते

अब्बास दाना

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न हो जिस पे भरोसा उस से हम यारी नहीं रखते
हम अपने आशियाँ के पास चिंगारी नहीं रखते

फ़क़त नाम-ए-मोहब्बत पर हुकूमत कर नहीं सकते
जो दुश्मन से कभी लड़ने की तय्यारी नहीं रखते

ख़रीदारों में रह कर ज़िंदगी वो बिक भी जाते हैं
तिरे बाज़ार में जो लोग हुश्यारी नहीं रखते

बनाओ घर न मिट्टी के लब-ए-साहिल ऐ नादानो
समुंदर तो किनारों से वफ़ादारी नहीं रखते

अना को सख़्ती-ए-हालात अक्सर तोड़ देती है
इसी डर से कभी फ़ितरत में ख़ुद्दारी नहीं रखते

दर-ओ-दीवार से उन के भला क्या आएगी ख़ुश्बू
जो घर के सहन में फूलों की इक क्यारी नहीं रखते

फ़क़त लफ़्ज़ों से हम 'दाना' हुनर की दाद लेते हैं
क़लम वाले कभी शौक़-ए-अदाकारी नहीं रखते