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न हम को याद करो और न याद आओ हमें | शाही शायरी
na hum ko yaad karo aur na yaad aao hamein

ग़ज़ल

न हम को याद करो और न याद आओ हमें

मेहवर नूरी

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न हम को याद करो और न याद आओ हमें
अजीब हुक्म है कहते हैं भूल जाओ हमें

तुम्हारे चेहरे तो कुछ रौशनी में आ जाओ
जो हो सके तो ज़रा देर तक जलाओ हमें

हमें अज़ीज़ हो कितने ये जानने के लिए
हमारी जान भी हाज़िर है आज़माओ हमें

खुलेंगे कितने ही असरार-ए-लफ़्ज़ लफ़्ज़ मगर
कभी तो तुम भी अकेले में गुनगुनाओ हमें

ज़रूरतों के सबब हम भी बिक गए 'महवर'
नज़र से अपनी गिरे हैं ज़रा उठाओ हमें