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न हम दुआ से अब न वफ़ा से तलब करें | शाही शायरी
na hum dua se ab na wafa se talab karen

ग़ज़ल

न हम दुआ से अब न वफ़ा से तलब करें

मीर हसन

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न हम दुआ से अब न वफ़ा से तलब करें
इश्क़-ए-बुताँ में सब्र ख़ुदा से तलब करें

दिल ख़ाक हो गया है तिरी रहगुज़ार में
गर जा सकें वहाँ तो सबा से तलब करें

आख़िर ख़ुशी तो इश्क़ से हासिल न कुछ हुई
हम अब ग़म-ओ-अलम ही बला से तलब करें

ग़म्ज़े ने ले के दिल को अदा के किया सुपुर्द
ग़म्ज़े से दिल को लें कि अदा से तलब करें

दौलत जो फ़क़्र की है सो है अपने दिल के पास
वो चीज़ ये नहीं कि गदा से तलब करें

दरवाज़ा गो खुला है इजाबत का पर 'हसन'
हम किस किस आरज़ू को ख़ुदा से तलब करें