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न गुल से काम है हम को न कुछ गुलज़ार से मतलब | शाही शायरी
na gul se kaam hai hum ko na kuchh gulzar se matlab

ग़ज़ल

न गुल से काम है हम को न कुछ गुलज़ार से मतलब

मरदान सफ़ी

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न गुल से काम है हम को न कुछ गुलज़ार से मतलब
ब-जाँ रखते हैं इक हमदम बदल इक यार से मतलब

न काम आलम से है हम को न हूर-उल-ऐन-ए-जन्नत से
है इक मदहोश दाना-तर ब-दिल-होशियार से मतलब

न मिल्लत है न मज़हब है न है मतलब कोई अपना
विसाल-ए-यार मज़हब है और है दीदार से मतलब

तसव्वुर है न काम अपना सिवा मुर्शिद की निस्बत के
तुझे है इन दिनों ऐ दिल शह-ए-कर्रार से मतलब

कहा मकरू-ओ-मकरुल्लाह ख़ैर-उल-माकेरीं जिस ने
छुपा ख़ुद मुझ को ज़ाहिर कर है उस मक्कार से मतलब

मैं वो वासिल हूँ दिलबर से कि दिल अपना है वो दिलबर
रहा दिल ही से काम अपना उसी ग़म-ख़्वार से मतलब

न हम ये हैं न हम वो हैं न हम हरगिज़ हैं गोशे में
ग़ुलाम-ए-क़ुल-हो-अल्लाह हैं इसी इज़हार से मतलब

न काफ़िर हैं न मोमिन हैं न मस्जिद है न मय-ख़ाना
न तस्बीह-ओ-मुसल्ला है न है ज़ुन्नार से मतलब

न हम आदम न हव्वा हैं न हम हूर-ओ-मलक यारो
न हम गंजीना पिन्हाँ हैं न है इज़हार से मतलब

ज़वाल-ए-जान-ओ-तन है याँ न हिर्स-ए-मा-ओ-मन बाक़ी
हबाब-ए-आब-ए-दरिया हैं न है इफ़्तार से मतलब

नसब हो या हसब दोनों मुबारक होवें ज़ाहिद को
तुझे तो है फ़क़त 'मर्दां' शह-ए-अबरार से मतलब