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न दे जो दिल ही दुहाई तो कोई बात नहीं | शाही शायरी
na de jo dil hi duhai to koi baat nahin

ग़ज़ल

न दे जो दिल ही दुहाई तो कोई बात नहीं

इफ़तिख़ार अहमद फख्र

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न दे जो दिल ही दुहाई तो कोई बात नहीं
ये चार दिन की ख़ुदाई तो कोई बात नहीं

जो माँगना है तुझे सिर्फ़ एक दर से माँग
ये दर-ब-दर की गदाई तो कोई बात नहीं

अगरचे ख़्वाहिश-ए-मंज़िल जुनूँ के नाख़ुन ले
ख़िरद की उक़्दा-कुशाई तो कोई बात नहीं

मज़ा तो जब है बुझे तिश्नगी-ए-ख़ार-ए-अलम
जुनून-ए-आबला-पाई तो कोई बात नहीं

ख़ुद अपने दिल को बना ले तू आस्तान-ए-वफ़ा
हरम की नासिया-साई तो कोई बात नहीं

निकल गई थी मिरे मुँह से दिल की बात जो कल
हुई है आज पराई तो कोई बात नहीं

मय-ए-सुख़न से न पिघले जो आबगीना-ए-दिल
तो 'फ़ख़्र' शो'ला-नवाई तो कोई बात नहीं