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न चिलमनों की हसीं सरसराहटें होंगी | शाही शायरी
na chilmanon ki hasin sarsarahaTen hongi

ग़ज़ल

न चिलमनों की हसीं सरसराहटें होंगी

बेकल उत्साही

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न चिलमनों की हसीं सरसराहटें होंगी
न होंगे हम तो कहाँ जगमगाहटे होंगी

मैं एक भँवरा तिरे बाग़ में रहूँ न रहूँ
किसे नसीब मिरी गुनगुनाहटें होंगी

किवाड़ बंद करो तीरा-बख़्तो सो जाओ
गली में यूँ ही उजालों की आहटें होंगी

न पूछ पाएँगे अहवाल-ए-बेबसी वो भी
मिरे लबों पे अगर कपकपाहटें होंगी

लहू निचोड़ लो मुमकिन है कल बहार के बाद
रगों में फैली हुई संसनाहटें होंगी

वो दिन भी आएगा 'बेकल' चमन के फूलों पर
ब-नाम-ए-जुर्म-ओ-ख़ता मुस्कुराहटें होंगी