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न आया हमें इश्क़ करना न आया | शाही शायरी
na aaya hamein ishq karna na aaya

ग़ज़ल

न आया हमें इश्क़ करना न आया

रियाज़ ख़ैराबादी

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न आया हमें इश्क़ करना न आया
मिरे उम्र-भर और मरना न आया

ये दिल की तड़प क्या लहद को हिलाती
तुम्हें क़ब्र पर पाँव धरना न आया

नमक-दाँ किए तुम ने गो लाख ख़ाली
नमक तुम को ज़ख़्मों में भरना न आया

यही दिन थे सौ सौ तरह तुम सँवरते
जवानी तो आई सँवरना न आया

दबाता था काफ़िर हसीनों का जोबन
मिरे दाग़-ए-दिल को उभरना न आया

तिरी तेग़ क्या क्या नहाई लहू में
तिरी तरह लेकिन निखरना न आया

सुना कर वो कहते हैं किस भोले-पन से
हमें वा'दा कर के मुकरना न आया

बने पंखुड़ी नक़्श-ए-पा कब लहद पर
तुझे ऐ सबा गुल कतरना न आया

'रियाज़' अपनी क़िस्मत को अब क्या कहूँ मैं
बिगड़ना तो आया सँवरना न आया