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न आए सामने मेरे अगर नहीं आता | शाही शायरी
na aae samne mere agar nahin aata

ग़ज़ल

न आए सामने मेरे अगर नहीं आता

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

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न आए सामने मेरे अगर नहीं आता
मुझे तो उस के सिवा कुछ नज़र नहीं आता

बला उसे भी तो कहते हैं लोग आलम में
अजब है किस लिए वो मेरे घर नहीं आता

वो मेरे सामने तूबा को क़द से माप चुके
उन्हों के नाम-ए-ख़ुदा ता-कमर नहीं आता

न बे-ख़तर रहो मुझ से कि दर्द-मंदों के
लबों पे नाला कोई बे-ख़तर नहीं आता

डरा दिया है किसी ने उसे मगर 'आरिफ़'
मिरे ख़राबे की जानिब ख़िज़र नहीं आता