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मुज़्तरिब आशिक़-ए-बे-जाँ न हुआ था सो हुआ | शाही शायरी
muztarib aashiq-e-be-jaan na hua tha so hua

ग़ज़ल

मुज़्तरिब आशिक़-ए-बे-जाँ न हुआ था सो हुआ

मुनीर शिकोहाबादी

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मुज़्तरिब आशिक़-ए-बे-जाँ न हुआ था सो हुआ
मुर्ग़-ए-तस्वीर पर-अफ़्शाँ न हुआ था सो हुआ

शुक्र है जामे से बाहर वो हुआ ग़ुस्सा में
जो कि पर्दे में भी उर्यां न हुआ था सो हुआ

इश्क़-ए-रुख़्सार-ए-किताबी ने बढ़ाई इज़्ज़त
जुज़्व-ए-दिल पारा-ए-क़ुरआं न हुआ था सो हुआ

जल्वा याक़ूत की बिजली का हुआ बालों में
शब-ए-गेसू में चराग़ाँ न हुआ था सो हुआ

दाग़-ए-पिन्हाँ तिरे आने से हुआ अफ़्सुर्दा
गुल चराग़-ए-तह-ए-दामाँ न हुआ था सो हुआ

उल्फ़त उस आरिज़-ए-सीमीं की गुलू-गीर हुई
नुक़रई तौक़-ए-गरेबाँ न हुआ था सो हुआ

ले गया कौन अक़ीक़-ए-लब-ए-जाँ-बख़्श की आब
ख़ुश्क-लब चश्मा-ए-हैवाँ न हुआ था सो हुआ

दश्त-ए-वहशत में बहा ख़ून-ए-कफ़-ए-पा कोसों
सुर्ख़ दामान-ए-बयाबाँ न हुआ था सो हुआ

अपनी आतिश-क़दमी भी है तिलिस्म-ए-ताज़ा
बैज़ा-ए-आबला बिरयाँ न हुआ था सो हुआ

आप ने मस्त किया ख़ून-ए-जवानान-ए-चमन
ज़र-ए-गुल गंज-ए-शहीदाँ न हुआ था सो हुआ

हुक्म-ए-वाला से 'मुनीर' अब्र-ए-तबीअ'त अपना
इस ग़ज़ल में गुहर-अफ़शाँ न हुआ था सो हुआ