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मुज़्महिल क़दमों पे बार | शाही शायरी
muzmahil qadmon pe bar

ग़ज़ल

मुज़्महिल क़दमों पे बार

ज़फ़र रबाब

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मुज़्महिल क़दमों पे बार
गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार

दिल है कू-ए-यार में
सर चला है सू-ए-दार

गुम्बद-ए-बे-दर की गूँज
बंद होंटों की पुकार

ढाँप लो ख़ाली शिकम
हो चुके फ़ाक़े शुमार

खा गई दहक़ान को
सब्ज़ खेतों की क़तार

मदफ़न-ए-मेहनत-कशाँ
कार-ख़ानों के मज़ार

मंज़िलें हैं बे-निशाँ
रास्ते गर्द-ओ-ग़ुबार

तन बहुत धोया 'रबाब'
मैल मन का भी उतार