मुज़्महिल क़दमों पे बार
गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार
दिल है कू-ए-यार में
सर चला है सू-ए-दार
गुम्बद-ए-बे-दर की गूँज
बंद होंटों की पुकार
ढाँप लो ख़ाली शिकम
हो चुके फ़ाक़े शुमार
खा गई दहक़ान को
सब्ज़ खेतों की क़तार
मदफ़न-ए-मेहनत-कशाँ
कार-ख़ानों के मज़ार
मंज़िलें हैं बे-निशाँ
रास्ते गर्द-ओ-ग़ुबार
तन बहुत धोया 'रबाब'
मैल मन का भी उतार
ग़ज़ल
मुज़्महिल क़दमों पे बार
ज़फ़र रबाब