EN اردو
मुट्ठी में दो-चार नहीं | शाही शायरी
muTThi mein do-chaar nahin

ग़ज़ल

मुट्ठी में दो-चार नहीं

दीपक शर्मा दीप

;

मुट्ठी में दो-चार नहीं
कोई तेरा यार नहीं

यूँ ही गले लगाएगा
ऐसा तो संसार नहीं

सच्ची बातें लिखता हो
कोई भी अख़बार नहीं

कहता हूँ सो करता हूँ
भाई मैं सरकार नहीं

अपनी राह बनाओ ख़ुद
यूँ तो बेड़ा पार नहीं

पूछ पूछ कर मारेंगे
कह दो मैं बीमार नहीं

चलो तवाइफ़ ग़ाफ़िल है
हम तो इज़्ज़त-दार नहीं

माना कि बेकार हैं 'दीप'
इतने भी बेकार नहीं