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मुतरन्निम है मिरी रूह में यूँ तेरी सदा | शाही शायरी
mutarannim hai meri ruh mein yun teri sada

ग़ज़ल

मुतरन्निम है मिरी रूह में यूँ तेरी सदा

इरफ़ाना अज़ीज़

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मुतरन्निम है मिरी रूह में यूँ तेरी सदा
आबशारों की सुकूँ-रेज़ रवानी जैसे

नूर-ओ-निकहत में नहाया हुआ वो तेरा कलाम
रूद-ए-कौसर का चमकता हुआ पानी जैसे

मेरी पलकों पे हैं यूँ गौहर-ए-शबनम ग़लताँ
मेरे होंटों पे हो फूलों की कहानी जैसे

मेरे साँसों में मचलती है हिना की ख़ुश्बू
तेरी नौ-ख़ेज़ मोहब्बत की निशानी जैसे

कितना ख़ुश-रंग है मासूम तबस्सुम तेरा
मुस्कुराती हो बहारों की जवानी जैसे

बस गया मेरे तसव्वुर में हयूला तेरा
ज़ेहन-ए-शाइर में कोई याद सुहानी जैसे

दिल के आँगन में उभरता है तिरा अक्स-ए-जमील
चाँदनी-रात में हो रात की रानी जैसे