EN اردو
मुस्तक़िल हाथ मिलाते हुए थक जाता हूँ | शाही शायरी
mustaqil hath milate hue thak jata hun

ग़ज़ल

मुस्तक़िल हाथ मिलाते हुए थक जाता हूँ

हाशिम रज़ा जलालपुरी

;

मुस्तक़िल हाथ मिलाते हुए थक जाता हूँ
में नए दोस्त बनाते हुए थक जाता हूँ

अब्र आवारा हूँ मैं कोई समुंदर तो नहीं
प्यास सहरा की बुझाते हुए थक जाता हूँ

मालिक कौन-ओ-मकाँ अब तो रिहाई दे दे
जिस्म का बोझ उठाते हुए थक जाता हूँ

तो मिरे राज़ बताते हुए थकता ही नहीं
में तिरे राज़ छुपाते हुए थक जाता हूँ

मेरे क़दमों से लिपट जाती है माँ की ममता
मैं कहीं गाँव से जाते हुए थक जाता हूँ

जाने कब जा के मिरा इश्क़ मुकम्मल होगा
रक़्स करते हुए गाते हुए थक जाता हूँ