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मुश्किल को समझने का वसीला निकल आता | शाही शायरी
mushkil ko samajhne ka wasila nikal aata

ग़ज़ल

मुश्किल को समझने का वसीला निकल आता

अम्बर खरबंदा

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मुश्किल को समझने का वसीला निकल आता
तुम बात तो करते कोई रस्ता निकल आता

घर से जो मिरे सोना या पैसा निकल आता
किस किस से मिरा ख़ून का रिश्ता निकल आता

मेरे लिए ऐ दोस्त बस इतना ही बहुत था
जैसा तुझे सोचा था तू वैसा निकल आता

मैं जोड़ तो देता तिरी तस्वीर के टुकड़े
मुश्किल था कि वो पहला सा चेहरा निकल आता

बस और तो क्या होना था दुख-दर्द सुना कर
यारों के लिए एक तमाशा निकल आता

ऐसा हूँ मैं इस वास्ते चुभता हूँ नज़र में
सोचो तो अगर मैं कहीं वैसा निकल आता

अच्छा हुआ परखा नहीं 'अम्बर' को किसी ने
क्या जानिए क्या शख़्स था कैसा निकल आता