EN اردو
मुक़द्दर में साहिल कहाँ है मियाँ | शाही शायरी
muqaddar mein sahil kahan hai miyan

ग़ज़ल

मुक़द्दर में साहिल कहाँ है मियाँ

आबिद मुनावरी

;

मुक़द्दर में साहिल कहाँ है मियाँ
मिरी नाव बे-बादबाँ है मियाँ

जो बर्क़-ए-तपाँ से मुनव्वर रहे
वही आशियाँ आशियाँ है मियाँ

कहाँ जाइए मय-कदा छोड़ कर
यही एक जा-ए-अमाँ है मियाँ

अबद तक मुकम्मल न हो पाएगी
शब-ए-ग़म की ये दास्ताँ है मियाँ

कहाँ पावँ रक्खूँ परेशान हूँ
ज़मीं सूरत-ए-आसमाँ है मियाँ

मुक़द्दस सही कारोबार-ए-वफ़ा
मगर इस में नुक़सान-ए-जाँ है मियाँ

अजब फीकी फीकी सी है चाँदनी
उदास आज क्यूँ चन्द्रमाँ है मियाँ

जहाँ दिल के बदले में मिलता है दिल
वो दुनिया न जाने कहाँ है मियाँ

नहीं मुझ से 'आबिद' वो कुछ ख़ास दूर
फ़क़त ज़िंदगी दरमियाँ है मियाँ