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मुंतज़िर उस के दिला ता-ब-कुजा बैठना | शाही शायरी
muntazir uske dila ta-ba-kuja baiThna

ग़ज़ल

मुंतज़िर उस के दिला ता-ब-कुजा बैठना

नज़ीर अकबराबादी

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मुंतज़िर उस के दिला ता-ब-कुजा बैठना
शाम हुई अब चलो सुब्ह फिर आ बैठना

होश रहा ने क़रार दीन रहा और न दिल रहा
पास बुतों के हमें ख़ूब न था बैठना

लुत्फ़ से ऐ दिल तुझे उस के जो अबरू बिठाए
बैठियो लेकिन बहुत पास न जा बैठना

दिल की हमारी ग़रज़ बाँधे है क्या बंद बंद
शोख़ का वो खोल कर बंद-ए-क़बा बैठना

कूचे में उस शोख़ के जाते तो हो ऐ नज़ीर
जुल में कहीं अपनी चाह तुम न जता बैठना