मुन्कशिफ़ तल्ख़ी-ए-हालात न होने पाई
आप आए भी तो कुछ बात न होने पाई
दिल भर आया भी तो आँखों से न टपके आँसू
अब्र छाया भी तो बरसात न होने पाई
आप से मिल के भी अक्सर यही महसूस हुआ
आप से गोया मुलाक़ात न होने पाई
हम ने जीते हुए देखा तो है दिल वालों को
पर अयाँ सूरत-ए-हालात न होने पाई
'सोज़' हर रोज़ हुई रात मगर हिज्र की रात
वस्ल की रात कोई रात न होने पाई
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ग़ज़ल
मुन्कशिफ़ तल्ख़ी-ए-हालात न होने पाई
अब्दुल मलिक सोज़