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मुन्कशिफ़ तल्ख़ी-ए-हालात न होने पाई | शाही शायरी
munkashif talKHi-e-haalat na hone pai

ग़ज़ल

मुन्कशिफ़ तल्ख़ी-ए-हालात न होने पाई

अब्दुल मलिक सोज़

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मुन्कशिफ़ तल्ख़ी-ए-हालात न होने पाई
आप आए भी तो कुछ बात न होने पाई

दिल भर आया भी तो आँखों से न टपके आँसू
अब्र छाया भी तो बरसात न होने पाई

आप से मिल के भी अक्सर यही महसूस हुआ
आप से गोया मुलाक़ात न होने पाई

हम ने जीते हुए देखा तो है दिल वालों को
पर अयाँ सूरत-ए-हालात न होने पाई

'सोज़' हर रोज़ हुई रात मगर हिज्र की रात
वस्ल की रात कोई रात न होने पाई