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मुँह तिरा क्यूँ आज ज़ोर-ए-ना-तवानी फिर गया | शाही शायरी
munh tera kyun aaj zor-e-na-tawani phir gaya

ग़ज़ल

मुँह तिरा क्यूँ आज ज़ोर-ए-ना-तवानी फिर गया

मुर्ली धर शाद

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मुँह तिरा क्यूँ आज ज़ोर-ए-ना-तवानी फिर गया
उस के आते ही मिरे चेहरे पे पानी फिर गया

भूल कर आशिक़ तुम्हारा जा रहा था तूर पर
दूर से सुन कर सदा-ए-लन-तरानी फिर गया

ज़िल्लत-ओ-रुसवाई की हद भी है कोई डूब मर
ऐ दिल-ए-नाकाम अब तो सर पे पानी फिर गया

उस के आगे तू ने फैलाया अगर दस्त-ए-सवाल
याद रख ऐ दिल सुलूक-ए-मेहरबानी फिर गया

दिल मिटाया तेरी ख़ातिर जान की पर्वा न की
किस लिए तू हम से ऐ अहद-ए-जवानी फिर गया

बे-सुतूँ को काट कर लाया था ज़ालिम जू-ए-शीर
कोहकन की हसरतों पर फिर भी पानी फिर गया

पत्तियाँ पज़मुर्दा फूलों की चमन में देख कर
सामने आँखों के दौर-ए-ऐश-ए-फ़ानी फिर गया

कल खिली थी जो कली है आज मुरझाई हुई
मेरी नज़रों में मआल-ए-ज़िंदगानी फिर गया

बुल-हवस का मुँह हो काला कान में क्या कह दिया
आप के चेहरे पे रंग-ए-अर्ग़वानी फिर गया

बर्क़ बन कर आज वो महफ़िल में आए इस तरह
मेरी आँखों में मिरा अहद-ए-जवानी फिर गया

भर के साक़ी ने दिया जाम-ए-शराब-ए-अर्ग़वाँ
'शाद' के चेहरे पे रंग-ए-शादमानी फिर गया