मुँह किताबी तेरा बयाज़ी नईं
वो जवाबी है एतराज़ी नईं
सर्व हर-चंद है ग़ुलाम तिरा
लेकिन आज़ादगी का राज़ी नईं
साहिब-ए-हाल को ज़माने में
फ़िक्र-ए-मुस्तक़बिल और माज़ी नईं
दाद बे-दाद तुझ सितम सूँ है
बस-कि शहर-ए-हुस्न में क़ाज़ी नईं
'मुबतला' बाग़ में है शोर-ओ-फ़ुग़ाँ
गुल कूँ बुलबुल की कुछ तक़ाज़ी नईं

ग़ज़ल
मुँह किताबी तेरा बयाज़ी नईं
उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला