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मुँह किताबी तेरा बयाज़ी नईं | शाही शायरी
munh kitabi tera bayazi nain

ग़ज़ल

मुँह किताबी तेरा बयाज़ी नईं

उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला

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मुँह किताबी तेरा बयाज़ी नईं
वो जवाबी है एतराज़ी नईं

सर्व हर-चंद है ग़ुलाम तिरा
लेकिन आज़ादगी का राज़ी नईं

साहिब-ए-हाल को ज़माने में
फ़िक्र-ए-मुस्तक़बिल और माज़ी नईं

दाद बे-दाद तुझ सितम सूँ है
बस-कि शहर-ए-हुस्न में क़ाज़ी नईं

'मुबतला' बाग़ में है शोर-ओ-फ़ुग़ाँ
गुल कूँ बुलबुल की कुछ तक़ाज़ी नईं