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मुँह दिखा कर मुँह छुपाना कुछ नहीं | शाही शायरी
munh dikha kar munh chhupana kuchh nahin

ग़ज़ल

मुँह दिखा कर मुँह छुपाना कुछ नहीं

रियाज़ ख़ैराबादी

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मुँह दिखा कर मुँह छुपाना कुछ नहीं
कुछ नहीं ये मुँह दिखाना कुछ नहीं

था जो क्या कुछ बात कहते कुछ न था
आदमी का भी ठिकाना कुछ नहीं

गुल हैं माशूक़ों के दामन के लिए
क़ब्र-ए-आशिक़ पर चढ़ाना कुछ नहीं

है सताने का भी लुत्फ़ इक वक़्त पर
हर घड़ी उन को सताना कुछ नहीं

बे-मनाए मन गए हम आप से
ऐसे रूठे को मनाना कुछ नहीं

हाथ से गुलचीं के झटके कौन खाए
शाख़-ए-गुल पर आशियाना कुछ नहीं

ये हसीं हैं प्यार कर लेने की चीज़
इन हसीनों को सताना कुछ नहीं

ऐ हबाब अपनी ज़रा हस्ती तो देख
इस पर इतना सर उठाना कुछ नहीं

तू ने तौबा की तो है लेकिन 'रियाज़'
बात का तेरी ठिकाना कुछ नहीं