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मुनाफ़िक़त का निसाब पढ़ कर मोहब्बतों की किताब लिखना | शाही शायरी
munafiqat ka nisab paDh kar mohabbaton ki kitab likhna

ग़ज़ल

मुनाफ़िक़त का निसाब पढ़ कर मोहब्बतों की किताब लिखना

आफ़ताब हुसैन

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मुनाफ़िक़त का निसाब पढ़ कर मोहब्बतों की किताब लिखना
बहुत कठिन है ख़िज़ाँ के माथे पे दास्तान-ए-गुलाब लिखना

मैं जब चलूँगा तो रेगज़ारों में उल्फ़तों के कँवल खिलेंगे
हज़ार तुम मेरे रास्तों में मोहब्बतों के सराब लिखना

फ़िराक़ मौसम की चिलमनों से विसाल लम्हे चमक उठेंगे
उदास शामों में काग़ज़-ए-दिल पे गुज़रे वक़्तों के बाब लिखना

वो मेरी ख़्वाहिश की लौह-ए-तिश्ना पे ज़िंदगी के सवाल उभरना
वो उस का हर्फ़-ए-करम से अपने क़ुबूलियत के जवाब लिखना

गए ज़मानों की दर्द कजलाई भूली बिसरी किताब पढ़ कर
जो हो सके तुम से आने वाले दिनों के रंगीन ख़्वाब लिखना