EN اردو
मुख़्तसर सी बात को भी मसअला कहते रहे | शाही शायरी
muKHtasar si baat ko bhi masala kahte rahe

ग़ज़ल

मुख़्तसर सी बात को भी मसअला कहते रहे

ग़ौसिया ख़ान सबीन

;

मुख़्तसर सी बात को भी मसअला कहते रहे
ज़िंदगी में आप को क्यूँ रहनुमा कहते रहे

बे-वफ़ा होने का फ़तवा दे दिया उन ने हमें
उम्र-भर जिन के सितम को हम वफ़ा कहते रहे

कर दिया मिस्मार उन ने एक पल में क़स्र-ए-दिल
जिन के ख़स्ता घर को भी हम ख़ुश-नुमा कहते रहे

हर घड़ी हर वक़्त हर पल हर जगह बे-ख़ौफ़ हम
वो हमारे थे हमारे हैं सदा कहते रहे

धीरे धीरे चल दिए उस राह पर हम भी 'सबीन'
रात-दिन सब जिस को ग़म की कर्बला कहते रहे