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मुख़्तलिफ़ हैं मिरी बहार के रंग | शाही शायरी
muKHtalif hain meri bahaar ke rang

ग़ज़ल

मुख़्तलिफ़ हैं मिरी बहार के रंग

नीना सहर

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मुख़्तलिफ़ हैं मिरी बहार के रंग
कुछ मिरे अपने कुछ उधार के रंग

आज यकसर बहार ले आई
मेरे दिल की गली में प्यार के रंग

तेरी आँखों से मिलते-जुलते हैं
मेरी आँखों के आबशार के रंग

दिल की चौखट सजाए बैठे हैं
आज भी तेरे इंतिज़ार के रंग

रात मिल कर गले बहुत रोए
तेरी यादों से मेरे प्यार के रंग

वक़्त की धूप का क़ुसूर नहीं
थे ही कच्चे वो ए'तिबार के रंग

थक गए पर महक न ला पाए
काग़ज़ी फूल पर बहार के रंग

धूप रुख़ पर पड़ी हवस की 'सहर'
उड़ गए इश्क़ के ख़ुमार के रंग